Sunday, December 30, 2012

नारी अस्मिता के भारतीय आयाम बदलने का वक्त

प्रिय देशवासियों, मेरे भाइयों और बहनों ... 

दामिनी की जीवन की शाम इस तरह होगी .. हम में से किसी ने न सोचा होगा । उसका स्त्री हो जन्म लेना उसकी सबसे बड़ी मुसीबत बन जाएगी। भारत जैसे देश में जहाँ स्त्री की अस्मिता उसकी सबसे बड़ी पूँजी होती है, उस पर आघात होना, उसके जीवित शरीर पर अमानुषिक चोट पहुँचाना उसकी हत्या करने से भी ज्यादा खराब है।
हमारे समाज में पशु-मानवों का अस्तित्व कैसे बढ़ता जा रहा है, शोचनीय - चिंतनीय विषय है। किसी एक आयाम में कमी-खामी निश्चित करना शायद बेमानी होगी। यदि कोई बच्ची-लड़की-स्त्री  पुरुष समाज में छिपे जानवरों का शिकार बनती है तो उसका पूरा जीवन कैसे पल में बदल जाता है... वह यदि ज़िंदा रहती है तो उसका जीना कैसा होता है.. उसके सिवाय कोई दूसरा कैसे समझ सकता है  
1.शारीरिक, मानसिक रूप से घायल व असहाय होने पर भी  समाज की नज़रें उसके प्रति बदल जाती हैं। पूरी जिंदगी तिरस्कृत नज़रों का सामना करना उसकी नियति बन कर रह जाती है।
2. समाज की खुसर-फुसर, अपने लिए अपमानजनक कहानी की पात्र बनी रहना उसके अस्तित्व का पर्याय बन जाता है।
3. उसका पूरा परिवार समाज में सदैव अपमानित होता रहता है।
4. मर्डर के केस में एक बार ही मरना होता है पर ऐसी लड़की जीवन में बार-बार मरती रहती है...समाज की चुभती हुई नज़रों का सामना करते हुए। उसे सोचने पर मज़बूर होना पड़ता हैकि ऐसी ज़िल्लत से अच्छा तो   मर ही जाना था।
5. समाज के तथाकथित ठेकेदारों की इस दुनिया में बातें करने वाले तो हज़ारों मिलते हैं पर उसे जीवन साथी के रूप में अपनाने वाला कोई भी नहीं आगे आता।
6. अपने कहे जाने वाले परिवार में अपने ही परिजनों के लिए वह अजनबी तथा अपराधी बन कर रह जाती है जबकि दुष्कर्म करने वाले दरिंदे स्वच्छंद घूमते रहते हैं।
7. दरिंदगी की शिकार होने पर वह कभी भी एक सामान्य जीवन नहीं बिता पाती है
8. ऐसी लड़की और उसका परिवार समाज की इस रुग्ण  मानसिकता के कारण या तो ऐसी बरबरता को  छिपाने पर मजबूर होती है या फिर इंसाफ़ पाने की तमाम पेचीदगियों से प्रशासन तंत्र से गुहार लगाने से  भी कतराती है कि कहीं और भी ज़्यादा ज़िल्लतों से जीना तक दुरूह न हो जाए ज़िंदगी....

आइए विचार करें अपने सरकारी तंत्र की भूमिका पर ।

समाज की उपेक्षाओं की परवाह न करते हुए यदि किसी ने पुलिस के पास रिपोर्ट लिखाने की हिम्मत भी की तो उसे पुलिसिया कार्यवाही के आड़े - तिरछे सवालों का सामना करना उसके आत्म सम्मान को तार-तार करता है। दुष्कर्म करने वाले तो शान से इसी समाज में घूमते रहते हैं पर उस निरीह को इंसाफ़ के लिए तरसना पड़ता है क्योंकि कानून की प्रक्रिया इतनी लम्बी होती है कि एंत तक पहुँचते- पहुँचते वह प्रभावहीन हो जाती है।  कभी-कभी तो ऐसे मामलों की रिपोर्ट तक नही लिखी जाती है।


आजकल हमारे समाज में ऐसी कई दामिनियाँ है जो सिसक-सिसक कर जीने को मजबूर हैं। देश की राजधानी में इस दरिंदगी भरी घटना ने हम सबको झकझोर कर रख दिया है। इस तरह की दुर्घटनाओं की संख्या इतनी तेज़ी से बढ़ रही हैं कि मन सोचने पर विवश है कि क्या हम अपनी संततियों को नैतिक संस्कार देने से चूक रहे हैं  हमारे परवरिश में कहाँ चूक हो रही है कि इस तरह की मानसिकता पुरुष समाज को कटघरे में ला खड़ा कर दिया है। हमारे समाज की स्त्रियों के प्रति सोच एक प्रश्न चिन्ह बन गई है।

आज हमारे सामाजिक परिवेश मे कई पारिवारिक संबंध लुप्त होते जा रहे हैं। बहन, बुआ, मौसी, ताई जैसे रिश्ते या पड़ोसियों के बच्चों को अपने भाई - बहन जैसा समझने जैसी भावुकता जैसे हमारी जीवन शैली से मिटते जा रहे हैं। अब बस अंकल और आंटी दो शब्द सभी रिश्तों को मानों समेट लिए हों। इनमें कितना अपनापा है ... यह तो आप भी महसूस कर सकते हैं और हम भी।

आधुनिकता की दौड़ में , व्यस्तता की आँधी ने  बदलते प्रतिमानों ने अपनी बेटियों को सक्षम - योग्य- आत्म निर्भर बनाया पर पुरुष प्रधान समाज की खोखली मानसिकता को बदलने की दिशा में हम कहीं न कहीं चूक गए हैं।
अब समय की तीव्र पुकार है कि हम आत्म मंथन करें और उन सभी आयामों को प्रतिष्ठित करने की पहल करें जिससे हमारे समाज की ऐसी घृणित तसवीर जल्द से जल्द बदल सके।

  • दिग्भ्रमित करती सभी ऐसी फिल्मों- विज्ञापनों पर तुरंत रोक लगाई जाए जिसमें औरतों का अनायास देह प्रदर्शन हो।
  • कला के नाम पर अर्ध-नग्न स्त्रियों की भूमिका बंद की जाए।
  • वेब साइट पर उपलब्ध सभी भड़काऊ सामग्री को ब्लाक किया जाए।
  • लड़को की आपत्तिजनक व्यवहार को प्रश्रय न दिया जाए। 
  • यदि घर का पुरुष कोई  अनैतिक कर्म कर रहा है तो पूरे परिवार की ओर से, पूरे समाज की ओर से उसका बहिष्कार किया जाए न कि यह सोचकर नज़रअंदाज़ कर देना कि यह लड़का है.. 
  • पुरुषों का, लड़कों का लड़कियों को विषय बना कर भद्दे मज़ाक या जोक कहने को सराहा न जाए।
  • लड़कियों के साथ हो रहे किसी भी अभद्र व्यवहार में उनका साथ दे उचित मार्गदर्शन करना एवम् उनका मनोबल बढ़ाना न कि उन्हें हूी दोषी करार करना ।
  • लड़कियों के साथ ही साथ लड़को को भी नैतिकता का संस्कार देना ... स्त्री पुरुष के स्वस्थ संबंधों के लिए तैयार करना चाहिए।
  • पूरे समाज की सोच में परिवर्तन कि स्त्री भोग की वस्तु नहीं वरन समाज निर्माण की एक महत्तवपूर्ण इकाई है। माँ- बाप की दुलारी बेटी है, भाइयों की बहन है, किसी की माँ है, किसी की पत्नी है।
सरकारी तंत्र में कानून और कानूनों का उचित पालन करने की इच्छा शक्ति नहीं है। ऐसे घृणित अपराध के लिए कड़ी से कड़ी सज़ा हमारे राजनेता कैसे बना सकते हैं  क्योंकि वे या उनके बेटे कई जुर्म में दोषी साबित हो जाएँगे। 

आज हमारा पूरा समाज, समाज की मानसिकता, सरकार, कानून, पुलिस, हमारी नई पीढ़ी , हम सब दामिनी के अपराधी हैं। दामिनी हमें क्षमा करना... तुमने अपने बलिदान से हम सब में एक मजबूत पहल करने की जो अलख जगाई है ... वह हम कभी भी व्यर्थ नहीं जाने देंगे।

सस्नेह अलविदा मेरी बच्ची..