Wednesday, June 26, 2013

एक रहो ...बलशाली बनो।।

बात सीधे बच्चों से.....


जानते हो बच्चों ! कोई भी व्यक्ति चाहे कितना भी योग्य हो, सक्षम हो, काबिल हो , कुछ भी कर सकने की क्षमता रखता हो , पर वह सबके साथ मिलकर काम नहीं करता या समूह में दूसरे साथियों के साथ मिल-जुलकर नहीं रह पाता तो उसकी योग्यता का फ़ायदा उसको और समाज को न के बराबर मिलता है।

सबके साथ मिलकर काम करने से अपनी योग्यता को खुलकर विकास पाने का अवसर मिलता है। साथियों के गुणों का लाभ भी मिलता है। अन्यथा अकेले पड़कर अपने आत्म विश्वास में कमी आने लगती है। कभी-कभी तो प्रतिभाएँ समय के गर्त में लुप्त हो जाती हैं।योग्यता से भरपूर होने पर भी कई व्यक्ति अपना अस्तित्व तक खो बैठते हैं।

इस समय मुझे एक छोटा- सा उद्हरण याद आ रहा है। इसे मैं तुम लोगों को बताना चाहती हूँ। तैयार हो तो . अपने दिल और दिमाग से मेरी बात के सार को सावधानी से समझो। इसे अपने जीवन में उतारने की पूरी-पूरी कोशिश करना।

यह तो तुम जानते ही हो कि कौरवों और पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्यजी थे।एक बार वे अपने राजकुमार शिष्यों को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा के लिए जंगल में ले गए थे। सर्दियों का मौसम था। जंगल में लगे शिविरों में रात के समय भीषण सर्दी थी।सर्दी से बचने के लिए लकड़ी के कोयलों को एक बड़ी -सी अँगीठी में जलाया गया था।पाण्डव राजकुमार भी कौरवों के साथ अँगीठी के पास बैठकर आग ताप रहे थे। यह बात दुर्योधन को अच्छी नहीं लग रही थी। वह बार-बार पाण्डवों को कुछ न कुछ कह कर अपना आक्रोश प्रकट कर रहा था। गुरु जी के समझाने पर वह उठा और पैर पटकता हुआ कुछ दूर, अकेले जाकर बैठ गया।

गुरु जी ने अँगीठी में से एक बड़ा-सा दहकता हुआ कोयला निकाला और दुर्योधन के पास रख दिया। कुछ देर तक तो कोयला अच्छी तरह जला पर धीरे-धीरे उसकी तेज़ी कम होती गई। थोड़ी देर पश्चात् कोयला जो अंगारे की तरह दहक रहा था, पूरी तरह बुझ गया।

कहानी के बीच में एक छोटा-सा विराम लेती हूँ और तुम सबको कुछ सोचने - समझने का मौका देती हूँ।

बच्चों देखा तुमने - दहकता हुआ अंगारा जिसका गुण है इतनी गरमी देना कि यदि भूल से भी कोई उसे छू ले तो जल जाए। जबतक वह दूसरे कोयलों के साथ मिलकर जल रहा था , उसकी उष्णता , गर्मी, तेज़ी प्रखर थी, प्रचंड थी । लेकिन जब गुरु द्रोणाचार्य ने उसे अकेले अलग स्थान पर रख दिया तो न केवल उसकी तेज़ी कम हुई बल्कि वह पूरी तरह बुझ गया। यानि अकेला पड़कर उसका अस्तित्व ही समाप्त हो गया।

ठीक इसी तरह जब तुम्हें समूह में सबके साथ मिलकर काम करने का मौका मिलता है तो तुम सब मिल कर उम्दा प्रदर्शन कर पाते हो। तुम्हारी अच्छी बातों का फ़ायदा तुम्हारे समूह को मिलता है तो वहीं तुम्हे भी अपने अन्य साथियों की अच्छी बातों को सीखने का सुनहरा अवसर मिलता है। उनकी अच्छाई तुम्हारी अच्छाई से मिलकर कई गुना ज़्यादा प्रभावशाली बनती है। एकऔर एक मिलकर जब ग्यारह बन जाते हैं तो ढेर सारे मिलकर कितना बनेंगे, यह तुम खुद सोचो।

सके विपरीत अकेले होकर गुणों का भंडार रहते हुए भी कहीं उसी अंगारे की तरह ........... इसका अनुमान तुम स्वयं लगाओ। 

याद रखना - तुम्हें बड़े होकर अपने लिए, अपने परिवार  के लिए , अपने समाज के लिए  और अपने राष्ट्र के लिए बहुत सा काम करना है। मिलकर रहोगे तो जादुई सफलता पाओगे । आगे बढ़ते रहो.... सबको साथ आने दो.... कारवाँ अपने आप बन जाएगा। एकता में शक्ति है..... संगठन में बल है । एक रहो... बलशाली बनो।

अब तुम्हें लग रहा होगा कि दुर्योधन का क्या हुआ ? गुरु द्रोण ने भी उसे संगठन की महत्ता समझाते हुएसबके साथ अँगीठी के पास लाकर बैठाया। दुर्योधन को वापस लाया देख अन्य भाइयों समेत पाण्डवों ने भी प्रसन्नता व्यक्त की।

मेरे नन्हें - मुन्ने दोस्तों !मुझसे बातें कर, मेरी बातों को सुनकर तुम्हें कैसा लगा . ज़रूर-ज़रूर बताना।

मेरे बड़े साथी भी इस प्रसंग पर यदि कुछ लिखना चाहते हैं तो उनका भी बहुत-बहुत स्वागत है। आप मुझे English में भी लिख सकते हैं। 

प्यार से.....
आप सबकी नारायणी मैम।